Monday 26 January 2009

तुम्हारी याद आती है

अभी झंकार उस पल की ह्रदय में गुनगुनाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ' बरबस आंसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये जिन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

8 comments:

योगेश समदर्शी said...

बहुत अच्छी रचना है
नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

बडी अच्छी भावाभिव्यक्ति
तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये जिन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

वाह वाह

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ' बरबस आंसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

उत्तम रचना के लिए आपको बधाई है.

युग मानस yugmanas said...

प्रियवर अरुण जी,
तुम्हारी याद आती है काफ़ी अच्छी कविता है । आपकी भावनाओं, अनुभूतियों एवं प्रेमाभिव्यक्ति की उत्कृष्टता इस बात में है कि आपने अपनी अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति का सहारा लिया है ।
नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
इस सुंदर वर्णन ने आपकी भावनाओं को सुंदरतम साबित कर दिया है ।
तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
हृदय की गहराइयों से अभिव्यक्त इस अनुभूति के लिए आप बधाई के पात्र हैं ।
आपकी सक्षम लेखनी से ऐसी ही सुंदरतम रचनाएँ सदा सृजित होती रहें...ढ़ेर सारी बधाइयों सहित..
आपका,
डॉ. सी. जय शंकर बाबु
संपादक, युग मानस, साहिति

हरकीरत ' हीर' said...

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है.....

Waah Arun ji bhot accha likhte hain aap....!

manu said...

AAPKO PADHANE KAA ABHI TIME NAHIN HAI..........

AAPKO JALDI SE PAKADNE KI BETAABI THI...SO AA GAYAA.....
TASALLI SE BAAD MEIN AAUNGAA........

sarita sharma said...

kaisaa madhur, komal bhaav piroyaa hai aapne is geet me . achchhaa hai...gungunaane laayak.
shubhkamnaa ashesh..


Dr.Sarita Sharma

गौतम राजऋषि said...

पहले मनु जी से आपके बारे में सुना और फिर अभी-अभी हिंदी-युग्म पे श्याम सखा जी की गज़ल पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर खिंचा चला आया आपके ब्लौग पर...
वाह,पहले तो आपकी इमानदार टिप्पणी ने आपका प्रशंसक बनाया और फिर यहाँ आकर आपकी लेखनी ने...
वल्लाह....बहुत खूब
and please remove this word-verification thing fron your setting.it doesn't help at all,,,,

daanish said...
This comment has been removed by the author.
daanish said...

आज के इस बेतरतीब-सी चल रही कविताओं के
घोर अंधड़ में आपका ये सलोना-सा गीत किसी सुखद एहसास से
रु ब रु करवा गया ...
भावाताम्क्ता और काव्यताम्कता का अनूठा संगम ....
शैली और कथ्य भी रोचक और मधुरिम ...
बधाई स्वीकारें . . . . . .
---मुफलिस---