अभी झंकार उस पल की ह्रदय में गुनगुनाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ' बरबस आंसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये जिन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
8 comments:
बहुत अच्छी रचना है
नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
बडी अच्छी भावाभिव्यक्ति
तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये जिन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
वाह वाह
तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ' बरबस आंसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
उत्तम रचना के लिए आपको बधाई है.
प्रियवर अरुण जी,
तुम्हारी याद आती है काफ़ी अच्छी कविता है । आपकी भावनाओं, अनुभूतियों एवं प्रेमाभिव्यक्ति की उत्कृष्टता इस बात में है कि आपने अपनी अभिव्यक्ति के लिए प्रकृति का सहारा लिया है ।
नहाई हैं मधुर सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है
तुम्हे ही सोचता रहता हूँ ये सांसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
इस सुंदर वर्णन ने आपकी भावनाओं को सुंदरतम साबित कर दिया है ।
तुम्हे गर भूलना चाहूं तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
हृदय की गहराइयों से अभिव्यक्त इस अनुभूति के लिए आप बधाई के पात्र हैं ।
आपकी सक्षम लेखनी से ऐसी ही सुंदरतम रचनाएँ सदा सृजित होती रहें...ढ़ेर सारी बधाइयों सहित..
आपका,
डॉ. सी. जय शंकर बाबु
संपादक, युग मानस, साहिति
हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिजाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है.....
Waah Arun ji bhot accha likhte hain aap....!
AAPKO PADHANE KAA ABHI TIME NAHIN HAI..........
AAPKO JALDI SE PAKADNE KI BETAABI THI...SO AA GAYAA.....
TASALLI SE BAAD MEIN AAUNGAA........
kaisaa madhur, komal bhaav piroyaa hai aapne is geet me . achchhaa hai...gungunaane laayak.
shubhkamnaa ashesh..
Dr.Sarita Sharma
पहले मनु जी से आपके बारे में सुना और फिर अभी-अभी हिंदी-युग्म पे श्याम सखा जी की गज़ल पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर खिंचा चला आया आपके ब्लौग पर...
वाह,पहले तो आपकी इमानदार टिप्पणी ने आपका प्रशंसक बनाया और फिर यहाँ आकर आपकी लेखनी ने...
वल्लाह....बहुत खूब
and please remove this word-verification thing fron your setting.it doesn't help at all,,,,
आज के इस बेतरतीब-सी चल रही कविताओं के
घोर अंधड़ में आपका ये सलोना-सा गीत किसी सुखद एहसास से
रु ब रु करवा गया ...
भावाताम्क्ता और काव्यताम्कता का अनूठा संगम ....
शैली और कथ्य भी रोचक और मधुरिम ...
बधाई स्वीकारें . . . . . .
---मुफलिस---
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