Friday, 12 August 2016

जो सींच गए खूँ से धरती

जो सींच गए खूँ से धरती

डॉ. अरुण मित्तल अद्भुत

मेरे भारत की आज़ादी, जिनकी बेमोल निशानी है
जो सींच गए ख़ूँ से धरती, इक उनकी अमर कहानी है
वो स्वतंत्रता के अग्रदूत, बन दीप सहारा देते थे
ख़ुद अपने घर को जला-जला, माँ को उजियारा देते थे
उनके शोणित की बूंद-बूंद, इस धरती पर बलिहारी थी
हर तूफ़ानी ताकत उनके, पौरुष के आगे हारी थी
माँ की ख़ातिर लड़ते-लड़ते, जब उनकी साँसें सोईं थी
चूमा था फाँसी का फंदा, तब मृत्यु बिलखकर रोई थी
ना रोक सके अंग्रेज कभी, आंधी उस वीर जवानी की
है कौन क़लम जो लिख सकती, गाथा उनकी क़ुर्बानी की
पर आज सिसकती भारत माँ, नेताओं के देखे लक्षण
जिसकी छाती से दूध पिया, वो उसका तन करते भक्षण
जब जनता बिलख रही होती, ये चादर ताने सोते हैं
फिर निकल रात के साए में, ये ख़ूनी ख़ंजर बोते हैं
अब कौन बचाए फूलों को, गुलशन को माली लूट रहा
रिश्वत लेते जिसको पकड़ा, वो रिश्वत देकर छूट रहा
डाकू भी अब लड़कर चुनाव, संसद तक में आ जाते हैं
हर मर्यादा को छिन्न-भिन्न, कुछ मिनटों में कर जाते हैं
यह राष्ट्र अटल, रवि-सा उज्ज्वल, तेजोमय, सारा विश्व कहे
पर इसको सत्ता के दलाल, तम के हाथों में बेच रहे
ये भला देश का करते हैं, तो सिर्फ़ काग़ज़ी कामों में
भूखे पेटों को अन्न नहीं ये सड़ा रहे गोदामों में
अपनी काली करतूतों से, बेइज़्ज़त देश कराया है
मेरे इस प्यारे भारत का, दुनिया में शीश झुकाया है
पूछो उनसे जाकर क्यों है, हर द्वार-द्वार पर दानवता
निष्कंटक घूमें हत्यारे, है ज़ार-ज़ार क्यों मानवता
ख़ुद अपने ही दुष्कर्मों पर, घड़ियाली आँसू टपकाते
ये अमर शहीदों को भी अब, संसद में गाली दे जाते
खा गए देश को लूट-लूट, भर लिया जेब में लोकतंत्र
इन भ्रष्टाचारी दुष्टों का, है पाप यज्ञ और लूट मंत्र
गांधी, सुभाष, नेहरू, पटेल, देखो छाई ये वीरानी
अशफ़ाक़, भगत, बिस्मिल तुमको, फिर याद करें हिन्दुस्तानी
है कहाँ वीर आज़ाद, और वो ख़ुदीराम सा बलिदानी
जब लाल बहादुर याद करूँ, आँखों में भर आता पानी
जब नमन शहीदों को करता, तब रक्त हिलोरें लेता है
भारत माँ की पीड़ा का स्वर, फिर आज चुनौती देता है
अब निर्णय बहुत लाज़मी है, मत शब्दों में धिक्कारो
सारे भ्रष्टों को चुन-चुन कर, चौराहों पर गोली मारो
हो अपने हाथों परिवर्तन, तन में शोणित का ज्वार उठे
विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें
मैं खड़ा विश्वगुरु की रज पर, पीड़ा को छंद बनाता हूँ

यह परिवर्तन का क्रांति गीत, माँ का चारण बन गाता हूँ

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