माँ.......
कोई शिकायत नहीं है तुमसे मुझे
कि तुमने मुझे गर्भ में ही मार दिया
तुम तो मजबूर थी नाकितनी कोशिश की तुमने
लेकिन मुझे बचा नहीं पाई
पर मुझे कोई शिकायत नहीं है तुमसे
तुम तो यूं ही उदास हो
कोई पाप नहीं किया है तुमने
अरे मुझे जन्म ही तो नहीं लेने दिया न
मैं करती भी क्या जन्म लेकर
न तो थाली ही बजती मेरे जन्म पर
और ना ही बांटी जाती मिठाइयाँ
माँ
तुम रो क्यों रही हो
मैं तो समर्थन ही कर रही हूँ
तुम्हारे उस निर्णय का
जब तुमने दुःख के असीम पारावार से निकलकर
पापा को न केवल सांत्वना दी थी
बल्कि वादा भी किया था मुझे गर्भ मे ही ख़त्म कर देने का
माँतुम्हारा क्या कसूर है
तुम तो मजबूर थी ना
तुम नहीं विरोध नहीं कर सकती थी
दादी के आकांक्षा और पापा की आदेशनुमा अनुरोध का
और ......और .....हाँ
तुम सहन नहीं कर सकती थी .....पड़ोस की औरतों के ताने
तुमने मुझे जन्म लेने से रोककर
रोक लिया
अपनी हर भावी पीड़ा और आंसुओं की संभावना को
और हाँ माँ मुझे जन्म न देने के जो दावे किए गए थे
वो सब भी तो ठीक ही थे
ठीक ही तो कहा था पापा ने
प्रेमचंद के गोदान का वो अंश
"चारा खली पर पहला हक बैलों का है
बचे सो गायों का"
क्या तुम चाहोगी की तुम्हारी बेटी को निम्नता का अहसास हो
वो हमारे बेटे की अपेक्षा दबकर जीवन जिए
उसकी हर इच्छा हमारे लिए गौण हो
नहीं नातो फिर उसे जन्म मत दो
और मेरी माँतुम तो सबसे ही आगे निकल गई
रूह कांप उठती है
जब याद करती हूँ तुम्हारे वो घटिया मानसिक मंथन से निकले हुए दावे
इसी तरह समझाया था ना तुम्हें ख़ुद को
"बेटी तो जन्म से कष्ट हैहर असहनीय सहन करना पड़ता है
एक बेटी के लिए
वो पराया धन हैं
फिर भी
उसे पढ़ना लिखना पड़ेगा
वो सब उसके लिए किस काम का
वो बड़ी होगी तो समाज की गन्दी निगाहें उसे जीने नहीं देंगी
और शादी, दहेज़ की कल्पना से ही कोई भी कांप उठता है
और कहीं किसी से प्यार कर बैठेगी तो............
जीना, मरने से भी दूभर हो जायेगा
न जाने क्या हो वक्त बहुत ख़राब है
लड़की अगर हाथ से निकल जाए तो कहीं भी जा सकती है ................
वहां भी ........................नहीं नहीं ...............
इससे तो अच्छा है मैं उसे जन्म ही ना दूँ
"वाह माँ
कम से कम एक बार इतना तो सोचा होता
क्या बेटी को पढ़ाने से माँ-बाप कंगाल हो जाते हैं
क्या इस समाज में कोई नहीं मिलता बिना दहेज़ तुम्हारी बेटी का हाथ थामने वाला
क्या तुम्हे बिल्कुल भी यकीन नहीं था अपनी परवरिश पर
ज़रा बताओ मुझे
क्या सभी लड़कियां बन जाती हैं वेश्याएं .......................
सच तो ये है माँ कि तुमने खून किया है मेरा
ख़ुद को बचाने के लिए बलि चढ़ा दिया तुमने मुझे
सूख गई तुम्हारी ममता और ख़त्म हो गया तुम्हारा वात्सल्य
चंद घटिया और खोखले दावों के सामने
अरे किसने दिया तुम्हें
माँ कहलाने का हक
इससे तो अच्छा होता की तुम मुझे जन्म देती
और गला घोंटकर मार देती
कम से कम इसी बहाने ये अभागिन
स्पर्श तो पा जाती तुम्हारे हाथों का..................
पर तुमने तो मुझे एक अवसर भी नहीं दिया
सुना है माँ ... अस्पताल के पीछे जहाँ दफनाया गया था मुझे
वहां उग आया है एक नन्हा सा पौधा
कभी फुरसत मिले तो कड़कती बेरहम धूप में
मुझे अपने आँचल की छाँव देने आ जाना .........
बस माँ यही कहना था तुमसे ............
और हाँ
अब अपने आँसू पोंछ दो ........
भैया के स्कूल से आने को समय हो गया.......
4 comments:
बहुत ही सुन्दर लिखा है। बहुत-बहुत स्वागत है आपका।
sir, this is the most touching poetry i have ever read in my life...best of luck for fututre.
this one from my side-
main dooba to kinare par khadi thi duniya,
hasne vaalo me mera mukaddar bhi shamil tha,
ro raha tha jo janaze se lipat ker mere,
kaise keh du ki vo hi mera kaatil tha.
jo aansu na hote aankhon me,
to aankhein itni khoobsurat na hoti,
jo dard na hota dil me,
to khushi ki keemat pata na hoti,
jo bewafai na ki hoti waqt ne,
to wafa ki kabhi chahat na hoti,
agar maangne se poori ho jati muradein,
to uss khuda ki kabhi zaroorat na hoti.
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