Monday, 1 September 2008

मुक्ति

मेरी मेज पर रखा था
एक गुलदस्ता एक दिन उसका किनारा
जरा सा टूट गया
सामने रखे उस गुलदस्ते का वह टूटा हुआ किनारा
मुझे चुभने लगा
वह चुभा
एक दिन
दो दिन
तीन दिन
और फ़िर मैंने हटा दिया
उस गुलदस्ते को अपनी मेज से
क्योंकि मैं कभी नहीं रखता
टूटी हुई चीजें
और
अधूरे सम्बन्ध

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