हमेशा वो मेरी उम्मीद से बढ़कर निकलता है
मेरा गम हर नए मौसम में कुछ बेहतर निकलता है
कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है
मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है
तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है
अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है
निकलता ही नहीं 'अद्भुत' किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है
डॉ. अरुण मित्तल 'अद्भुत'
2 comments:
achhhi hai.........
achhi hai .......
Rajiv Bhatia
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