Tuesday 9 June 2009

रुला गए ना दादा .......................


वो दीपक था
अँधेरी रातों का
बुझ गया दिखाकर राह
वो शमां थी
दीवानी महफ़िल की
थम गयी फैलाकर बाँह
वो था दिनकर अस्त हुआ
करके रोशन धरा
वो महान काव्य चरित्र
जिसने सब में आदर्श भरा
वो गीतों की गुंजन
वो शब्दों की संवेदना
हरदम दिखाएगी राह
चंचल मन को नई कलम को
अब तो केवल हैं
"आँखों में आँसू"
ओठों पर कम्पन
उस महान काव्य मनीषी को
शत शत नमन,
शत शत नमन.......
जिसने सारी जिन्दगी अपनी अनमोल हास्य कविताओं से समस्त हिंदी जगत के श्रोताओं को पेट फाड़ फाड़कर हंसाया वो अकस्मात आँसू देकर हमारे बीच से चला गया और हिंदी काव्य मंचों पर एक ऐसा हास्य व्यंग्य का कीर्तिमान छोड़ गया जिसे नमन करके कवि परिवार स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है ........ उनसे जुडी मेरी एक याद नीचे तस्वीर के रूप में है. दिशा फाउंडेशन द्बारा आयोजित "दस्तक नई पीढी के" प्रथम काव्य उत्सव में डॉ कुंवर बेचैन, अल्हड बीकानेरी और अन्य मच के स्थापित कवियों के साथ और नीचे बैठी हैं १५ युवा कवियों की टोली जिन्हें आदित्य दादा के सामने काव्य पाठ का सौभाग्य प्राप्त हुआ ...............
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2 comments:

निर्मला कपिला said...

पहली बार आपका ब्लोग देखा बहुत अच्छी भाव मय और मार्मिक रचना है अदित्य जी को शत शत नमन आभार्

योगेन्द्र मौदगिल said...

पुनः श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं..... ऒमव्यास की क्या खबर है अब...?